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Wednesday, 18 October 2017

पुस्तकें-हमारी सच्ची मित्र

          Pile of Five Books  
          दोस्तों, यह सच है कि पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती हैं।पुस्तकों से ही हमें जीवन का सच्चा ज्ञान मिलता है। यह ज्ञान का भंडार होती हैं, इनके द्वारा ही हम जीवन के विभिन्न क्षेत्र तथा विभिन्न विषयों जैसे देश -विदेश का इतिहास, तकनीक, दर्शन आदि का सही तरीके से ज्ञान प्राप्त कर उनका जीवन में उपयोग कर अपने जीवन को सफल बनाते हैं। 

           पुस्तकें किसी भी व्यक्ति की भावनाओं या उनके विचारों के प्रचार एवं प्रसार का सशक्त माध्यम है। प्राचीन काल में जबकि छपाई-रंगाई के साधन नहीं थे तब भी हमारे देश में अनेक महान ऋषि -मुनि अपने द्वारा दिए जाने वाले ज्ञान को  ताड़-पत्र पर लिखकर उसे सहेज कर रखते थे जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ, तकनीकी युग आरंभ हुआ तब छापाखाना (प्रिंटिंग मशीन) के आविष्कार से विभिन्न पुस्तकों का निर्माण करना आसान हो गया। अधिक संख्या में पुस्तकों के निर्माण से इसकी पहुँच आम जनता तक हो गई ,इससे ज्ञान विज्ञान के एक नए युग का आरंभ हुआ।
                 
               पुस्तकें हम सभी के जीवन में प्रेरणा देने का कार्य करती हैं, पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करके ही इंसान पूरी दुनिया को अपने विचारों से प्रभावित करने की क्षमता रखता है। महात्मा गांधी जी को भी श्रीमद्भागवत गीता से ही अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की प्रेरणा मिली। तुलसीदास कृत रामचरितमानस तथा वेद व्यास कृत महाभारत जैसे अमूल्य निधि ने संपूर्ण युग को तथा भावी पीढ़ी को प्रेरित एवं प्रभावित किया। इन विभिन्न महान कृतियों ने आदिकाल से अब तक न केवल हमारा सही रूप में मार्गदर्शन किया बल्कि हमारे देश के गौरव पूर्ण इतिहास तथा सांस्कृतिक व साहित्यिक विरासत को संभाल कर रखा।

             पुस्तके हमारी सच्ची मित्र होती हैं जो हमें ज्ञान रुपी वह अनमोल मोती देती हैं जिन्हें पिरोकर हम अपने जीवन को सही आयाम दे पाते हैं। यदि हम बुरे मित्रों से संगति रखते हैं तो हममे भी कुसंस्कार ही विकसित होगा जबकि अच्छे मित्र न होने पर भी यदि हम पुस्तकों के साथ आनंद प्राप्त करना सीख जाएँ तो हमें एकांत में होने का भय भी महसूस नहीं होगा, यह हमें सही अर्थों में साहस एवं धैर्य सिखाती है। आज भी कई लोग अपने साथ हनुमान चालीसा की छोटी किताब रखते हैं तथा डर लगने पर इसका पाठ करते हैं।

           पुस्तकें ही सही रूप में चरित्र निर्माण करने में सहायक होती हैं। हमारे विभिन्न धर्म ग्रंथ रामायण, गीता, कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब, बाईबल आदि जहां हमें धर्म एवं कर्म की सही राह दिखाते हैं। वही पंचतंत्र की कहानियां, हितोपदेश आदि हमें नैतिकता का सही रूप से पाठ पढ़ाते हैं। आज के समय में भी अनेक मोटिवेशनल स्पीकर अपनी पुस्तकों के द्वारा नकारात्मक भाव को स्वयं से दूर करने एवं सफलता प्राप्त करने की विभिन्न तैयारियों के बारे में उत्कृष्ट ज्ञान देते रहते हैं।
           
             वर्तमान समय में युवा वर्ग समसामयिक ज्ञान एवं उत्तम विचारों से युक्त पुस्तकों को पढ़कर अपने चरित्र का विकास सही दिशा में कर सकते हैं, समाज को आगे बढ़ाने में तथा देश की एकता व अखंडता को मजबूत करने में अपना योगदान दे सकते हैं। यह जरूरी है कि घटिया पुस्तकों के अध्ययन से स्वयं को बचा कर रखें, यह ना केवल मानसिकता को विकृत करती है बल्कि नैतिकता व चरित्र के पतन में भी सहायक सिद्ध होती है।

           अतः सही पुस्तकों का चयन करके, उसके ज्ञान को अपने जीवन में उतार कर हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।


                            -प्रतिमा 

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Monday, 16 October 2017

चाँदी-वर्क वाली मिठाईयों के दुष्प्रभाव

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                 दोस्तों ,हमारा पावन पर्व दीपावली कल से शुरू हो जाएगा हर और इस त्योहार को मनाने का उत्साह चरम पर है । सबसे ज्यादा भीड़ मिठाइयों की दुकान पर होती है मिठाइयों की विभिन्न किस्में इस तरह से सजाई होती हैं कि देखते ही मुंह में पानी आ जाए ।इन मिठाइयों के बिना त्योहार की कल्पना हम कर भी नहीं कर सकते ।मिठाइयां खरीदते समय हम चांदी के वर्क वाली मिठाई भी खरीदते हैं और कीमत भी इनकी सामान्य मिठाइयों से अधिक होती है। क्या आप जानते हैं कि इन वर्क वाली मिठाइयों का आपकी सेहत पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि यह चांदी का वर्क है क्या?  दरअसल यह चांदी का पतरा या पर्ण है। चांदी को पीट-पीट कर उसे कुछ माइक्रोमीटर की चादर में बदला जाता है बहुत ही नाजुक होने के कारण इसे कागज में लपेटकर रखते हैं और इसकी एक रोल की कीमत 800 से ₹1000 तक होती है।
                चांदी का वर्क लगी मिठाईयाँ ना केवल दिखने में आकर्षक लगती हैं बल्कि हम भारतीयों का सोना -चांदी के प्रति प्रगाढ़ लगाव भी इसे खरीदने को विवश करता है। प्राचीन काल से ही यह माना जाता है कि चांदी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और साथ ही ताकत भी देता है।
             
            आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन वर्क लगी मिठाईयां खाने से शारीरिक ,मानसिक एवं सामाजिक रूप से हमें गंभीर नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

    शारीरिक  दुष्प्रभाव---   कई बार मिलावटखोर अधिक फायदे   के लिए चांदी में एल्यूमीनियम का मिलावट करते हैं।
 यह एल्युमिनियम दिमाग की कोशिकाओं को नष्ट कर देती है   जिससे अल्जाइमर्स अर्थात बुढापे में भूलने की बीमारी की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही कैंसर जैसी गंभीर एवं  घातक बीमारी भी इस से हो सकती है इसके अलावा पाचन तंत्र के अनेक अंग जैसे लिवर, किडनी आदि पर भी नुकसान पहुंचता है।

     सामाजिक  दुष्प्रभाव---    चांदी का वर्क बनाने के लिए हजारों जानवरों का कत्ल किया जाता है ताकि उनकी लचीली आंतों में चांदी को रखकर उसे कूटकर पतली वर्क बनाई जा सके। इस कारण कई लोग इसे मांसाहार की श्रेणी में भी रखते हैं।

    असली-नकली में पहचान का तरीका---   चांदी तथा एल्युमीनियम के वर्क में अंतर देखने के लिए उसे ध्यान से देखें। चांदी का वर्क कम चमकीला होता है जबकि एल्युमीनियम के वर्क में अधिक चमक दिखाई देती है।
                   चांदी के वर्क को हाथ से दबाने से वह टूट जाता है जबकि एल्युमीनियम का वर्क रोल हो जाता है और उसका गोला बन जाता है।

                    तो दोस्तों,  अगली बार जब भी आप मिठाई खरीदने जाएं तो इन बातों को जरूर ध्यान में रखें और अपनी सेहत से समझौता हरगिज़ ना करें।

                                                   -प्रतिमा 

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Sunday, 15 October 2017

संघर्ष पथ


              दोस्तों, यह मेरी नई कविता एक प्रेरणादायक कृति है, जो संघर्ष के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। मेरी यह कविता उन अध्ययनरत विद्यार्थियों को समर्पित है, जिन्हें रुकना नहीं है, थकना नहीं है, बस मंजिल की ओर आगे बढ़ना है। आशा है आप को यह पसंद आएगी।



     

        जिन्दगी  के  रास्ते,   हो  कितने  भी  कठिन

        संघर्ष  के  साए  में  रहके, चोट  करते  रात-दिन

        फिर  भी  इनको  कर  किनारे, हो  भले  ये  हलाहल

        बस  चला चल,  तू  चला चल, तू  चला चल...


        कठिनाई  की  इस  राह  पर, थक-हार  कर जो  थम  गया

        अंजान  राहों  की  भंवर  से, यूँ  ही  जो  तू  डर  गया

        फिर  दूर  दिखती  रोशनी, हाथ  से  जाए  निकल
     
        बस  चला चल,  तू  चला चल, तू  चला चल...


        मिल  जाएंगे  कुछ  हाथ  तुझको, इस  व्यथा  की राह  पे

        खिल  जाएगा  मन  सुन  के  दो,  स्नेह  शब्द  दुलार  के

        जो  न  मिले  फिर  भी  तू  बढ़,  इस  राह  पे  होके  प्रबल

        बस  चला चल,  तू  चला चल, तू  चला चल...



     

        गरल  मिश्रित  बूंद  अमृत , अब  तुझे  पीना  पड़ेगा

        कांटों  के  पगडंडियों  पर , हो  संभल  चलना  पड़ेगा।

        पांव  के  इन  छालों  के  इस , दर्द  को  कर  बेदखल

        बस  चला  चल,  तू  चला  चल,  तू  चला  चल...


        है  हाथ  तेरे  वज्र  और ,  पैरों  में  सौ  गज  का  है  बल

        खुद  को  समझ  वट सा वृहद ,और मन को कर स्थिर अचल

        गिर  कर  संभल  फिर  उठ बना , एक  चांद  तारों  का महल

        बस  चला  चल,  तू  चला  चल,  तू  चला  चल...

                                   धन्यवाद 

                                                             -प्रतिमा 

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Saturday, 14 October 2017

आन्तरिक खूबसूरती सर्वोपरि

                               
                              खूबसूरती अपने आप में आकर्षक एवं रोचक शब्द है इस दुनिया के प्रत्येक मनुष्य का यह प्राकृतिक गुण है कि जब कोई भी सुंदर वस्तु या व्यक्ति उसके सम्मुख हो तो कुछ क्षण के लिए अनायास ही उसकी नजरें उस पर ठहर जाती हैं।
                               सौंदर्य की प्रशंसा प्राचीन काल से चली आ रही है। हमारे देश में अनेक महान राजा महाराजा के दरबार में कवि होते थे जो सौंदर्य की महिमा एवं गुणगान के संदर्भ में छंद व कविता गढ़ते थे। रीति काल में तो स्त्री-सौंदर्य पर अनेक कालजयी रचनाएं बनीं।  परंतु सिर्फ रूप की सुंदरता ही सुंदरता नहीं होती ना ही यह सुंदरता के सभी प्रतिमानों पर खरी उतरती है आंतरिक सुंदरता का महत्व बाह्य सुंदरता की तुलना में कहीं अधिक है। समाज के ज्यादातर हिस्से में हम देखते हैं कि सुंदर व्यक्ति से वे अभिभूत हो कर उसकी प्रशंसा दिल खोलकर करते हैं भले ही वह व्यवहार एवं चरित्र में शालीन ना हो।   इसी प्रकार से सामान्य रंग रूप के एक गुणी एवं चरित्रवान व्यक्ति को वह सम्मान नहीं मिलता जिसका कि वह हकदार है बल्कि अपनी अच्छाई उसे सिद्ध करनी पड़ती है। ज्यादातर लोग बाहरी सुंदरता की ही प्रशंसा करते हैं जबकि आंतरिक खूबसूरती की उपेक्षा कर देते हैं।
                              यह सत्य है कि बाहरी काया की खूबसूरती समय अंतराल बाद ढलनी शुरू हो जाती है जबकि आंतरिक सुंदरता का निखार उम्र व अनुभव के साथ दिनों-दिन निखरता जाता है।  अतः किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसके तन के बदले मन की सुंदरता के आधार पर किया जाना चाहिए।
                             हम अपने इस विचार को जितना तवज्जो देते हैं हमारा मन भी धीरे-धीरे इन विचारों को ग्रहण करने लगता है। एक अच्छा इंसान अपने आंतरिक सुंदरता के बल पर ही लाखों लोगों के हृदय में जिंदा रहता है। दुनिया में अनेक महान विभूतियां अवतरित हुई हैं जैसे महात्मा गांधी,नेल्सन मंडेला, एपीजे अब्दुल कलाम आदि। आज ये सभी अपनी आंतरिक खूबसूरती और अपने गुणों के कारण ही करोड़ों लोगों के दिलों में बसते हैं।
                            आज स्कूली शिक्षा के सबसे शुरुआती स्तर पर अर्थात नर्सरी स्कूलों में बच्चों में सौंदर्यबोध का विकास करना उनके पाठ्यक्रम का एक हिस्सा है अर्थात छोटे बालकों में यह बोध होना जरूरी है कि प्राकृतिक वस्तुओं जैसे सूरज,चांद,सितारे फूलों,इंद्रधनुष आदि में सौंदर्य होता है लेकिन जब एक सुंदर स्त्री या सुंदर पुरुष के संदर्भ में यह ज्ञान दिया जाए तब कच्ची उम्र से ही उन्हें यह एहसास कराना जरूरी है कि व्यक्ति की बाह्य सुंदरता की तुलना में उसके विचारों व उसके व्यवहार की खूबसूरती के मायने अधिक हैं। अतः एक बार जब बचपन में ही उनमें यह समझ विकसित कर दी जाएगी तो भविष्य में वे बाहरी सुंदरता के आधार पर लोगों का मूल्यांकन नहीं करेंगे। इससे भावी पीढ़ी द्वारा समाज में सही संदेश जाएगा तथा इस परिवर्तन द्वारा समाज में सही समझ विकसित होगी इससे किसी व्यक्ति का महत्व उसके आचार विचार व व्यवहार के आधार पर होगा ना कि सिर्फ चेहरे की सुंदरता के आधार पर ।
                           कहा जाता है कि "फर्स्ट इंप्रेशन इस द लास्ट इंप्रेशन" अर्थात हमारा पहला ध्यान किसी व्यक्ति के बाह्य सौंदर्य एवं रखरखाव पर ठहरता है परंतु उस क्षणिक ध्यान को स्थायी करने का काम गुणों का ही होता है। हमारे परिवार एवं वातावरण से मिले हुए संस्कार व चरित्र ही हमें अंदर से खूबसूरत बनाते हैं ,जब आप अपने आंतरिक सुंदरता को महत्व देते हैं तो आप में अधिक आत्मविश्वास का संचार होता है और इसी आत्मविश्वास के बल पर आप पूरी दुनिया जीतने की क्षमता रखते हैं।
                             वैसे भी आज के इस विकासोन्मुख समाज में "ब्यूटी विद ब्रेन" को ज्यादा अहमियत दिया जाने लगा है क्योंकि बाहरी खूबसूरती के ढलने के बाद भी आंतरिक सुंदरता लोगों से जोड़े रखती है।
                             इस विषय से संबंधित आपको एक प्रेरक कहानी बताती हूं एक राजा की दो बेटियां थी एक अति सुंदर वह दूसरी सामान्य। राज परिवार में सुंदर राजकुमारी को अधिक अहमियत दिया जाता था जिससे वह घमंडी हो गई थी जबकि सामान्य रंग रूप वाली राजकुमारी ज्यादा गुणी एवं बुद्धिमान थी। एक बार पड़ोसी राज्य के राजा ने इस राजा के सेनापति एवं महामंत्री के साथ षड्यंत्र रच कर अचानक हमला किया और राजा को बंदी बना लिया। पूरे राज्यसभा के सामने जैसे ही विजेता राजा, बंदी राजा की हत्या के लिए आगे बढ़ा ठीक उसके पीछे एक सर्प फन फैलाए खड़ा था। सुंदर राजकुमारी यह देख कर खुश हुई कि सर्प अब उसे काट लेगा परंतु दूसरी राजकुमारी ने उसी क्षण राजा को धक्का दे दिया और खतरे से आगाह कराया। पड़ोसी राजा यह देखकर अत्यंत खुश हुआ और अपनी जान बचाने के एवज में राजा व उसके राज्य को मुक्त कर दिया। यहां एक राजकुमारी की सुंदरता पर दूसरी राजकुमारी की बुद्धिमत्ता अधिक प्रभावी साबित हुई।
                           अतः एक आदर्श व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि आंखों को तृप्त करने वाली बाहरी सुंदरता के बदले आंतरिक सुंदरता की परख करने की क्षमता अधिक प्रभावी हो।

                                                                                                                -प्रतिमा 

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Thursday, 12 October 2017

जीवन में सकारात्मकता के लाभ

Woman in White Long Sleeve Shirt Standing Near White and Gray House during Daytime
                     आज के इस दौर में दैनिक जीवन में सकारात्मक सोच का होना  बहुत ज़रुरी हो गया है। हर क्षेत्र में मनुष्य पर तनाव का हावी होना आम हो गया है। इसका मुख्य कारण वर्तमान जीवन शैली का अत्यंत जटिल होना है। तकनीक उन्नत होने से जहाँ सुविधाएं बढ़ी हैं , वहीं चिंता एवं तनाव से आत्म-संयम में कमी भी हुई है। छोटी-छोटी बातों पर नाराजगी व्यक्त करना , लड़ाई करना, यहाँ तक कि दूसरों की जान तक ले लेने में समय नहीं लगता। हताशा एवं उग्रता की यह स्थिति नकारात्मक विचारों के कारण ही होती है।

               
                     नकारात्मक सोच से उबरने का एक ही तरीका है कि अपने मन की इस विकृति को हम स्वयं ही दूर करने का प्रयास करें।अगर स्वयं से कोई गलती हो गई हो तो माफी मांग लें या दूसरों की गलती  हो तो उसे क्षमा करने का साहस करें। इससे मन की कटुता एवं दूषित भाव खत्म होते हैं। अधिक समय तक मन में दुरा भाव रखने से प्रतिशोध की भावना उत्पन्न होती है , किसी भी तरह से सामने वाले की हानि की कामना मन में बार-बार आती है तथा नकारात्मक सोच हममें भी तनाव उत्पन्न करता है ,जबकि अच्छी सकारात्मक सोच व्यक्ति में आत्मविश्वास की बढ़ोतरी करता है और उसे सफलता की राह की ओर अग्रसर करता है।


                     अपने जीवन में सकारात्मक भाव लाने के लिए हम अगर प्रयास करें तो परिणाम आशानुकूल बेहतर हो सकते हैं-

★ अपनी दिनचर्या में स्वयं एवं अन्य के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं।

★ किसी भी समस्या पर परेशान होने के बजाए उसके समाधान पर विचार करें।

★ हर दिन की शुरुआत ईश्वर को धन्यवाद करते हुए करें।

★ किसी जरूरतमंद की मदद करने से उसे तो खुशी मिलती ही है साथ ही स्वयं को भी सुकून मिलता है।

★ असफल होने पर निराश होने के बदले असफलता के कारणों को जानने और उन्हें दूर करने का प्रयास करें।

★ दूसरों की गलती पर उन्हें माफ करने का साहस जुटाएं।

★ तनाव की स्थिति में लंबी लंबी सांसे लें।

★ तनाव दूर करने के लिए कभी भी नशे का सहारा ना लें।


                         उपरोक्त सुझावों को अपनाकर हम अपने जीवन में सकारात्मक भाव ला सकते हैं और इसे खुशगवार बना सकते हैं।

                                                                                     -प्रतिमा 


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Wednesday, 11 October 2017

कान्हा की महिमा


 
     श्याम जो आन बसे मोरे मन में
   
     चैन गंवाई  नींद नहीं नैनन में


     श्याम सुंदर मुख मोर मुकुट धारी

     देख तुम्हरी महिमा हुई बलिहारी

     चंदा सो मुख मैं तुम्हरो निहारूँ

     साँझ ढ़ले तुम्हरी नजर उतारूँ

     तुम्हरी आभा कण-कण में समाई

     सबकी बिगड़ी तुमने बनाई

     दरस दिखाओ करो पूरी मन की तृष्णा

     चरण पखारूँ नित ओ मोरे  कृष्णा

     तुम संग बांधी कान्हा जीवन की डोरी

     तोड़ न देना पल में  आस ये मोरी

     बंसी की तान सुन सुध-बुध गँवाई

     तुम संग कान्हा सच्ची प्रीत निभाई


     हुई विरहन सुन  मनवा करे आलाप

     आन बसो कान्हा  दूर करो संताप ।
  

                                         -प्रतिमा 


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Tuesday, 10 October 2017

वो बीते दिन

                   
                   कभी  सोचतीं  हूँ  तो  लगता है ये

                    जाने कहाँ गुम हुए वो बीते  दिन


          वो  खुला-खुला  सा  आसमां,

          वो  दूर  तक  फैली  हरियाली,

          वो  कुएं  की  रहट  और,

          खेतों  में  गेहूं  की  बाली

          वो  भौंरों  की  गुनगुन,

          वो  पेड़ों  की  डाली

          वो  रंग-बिरंगी  उड़ती,

          तितली  मतवाली


                      वो  कुएं  पे  पनिहारिन

                      की   हँसी-ठिठोली

                      वो  नन्हे  बच्चों  की

                      आपस  में  ठेला-ठेली

                      वो  गर्मी  की  दोपहरी,

                      छुपना  अमराई  के  नीचे

                      या  फिर  नदी  की  ठंडक में,

                      अपने   साथी  को  खींचे


        वो  ठंडी  की  रातें,

       चादर  में  खुद  को  समेटे

       या  अलाव  को  घेरे,

       करें  गपशप  यूँ  बैठे

       वो  सावन  महीने  दिखे,

       सब  धानी-धानी

       वो  कागज़  की  कश्ती,

       वो  बारिश  का  पानी

     
               वो  गौरैयों  का  झुंड,

               और  माटी  का अंगना

               वो  अल्हड़  सी  गोरी

               यूँ   खनकाए   कंगना


      देतीं  मन  को  खुशियाँ,

      गुज़रे  कल  की  यादें

      कोई  आज  को  काश,

      फिर   वैसा   बना   दे ।।


                           -प्रतिमा 


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