रब ने दी है मुझे आज जीने की वजह।
पुलकित है मन और झूमे है तन,
नन्ही परी ने रखा जब से कदम।
किलकारी लगे उसकी साज़ों की सरग़म,
गूंजे ये आंगन चलती है जब छम-छम।
दिखे मुझको उसमे जन्नत का वरदान,
खिले मन की कलियाँ देती जब मुस्कान।
बेटी तो है गौरव बेटी है अभिमान,
फिर क्यों इसको समझे हो जैसे अपमान।
दो उसको भी प्यार दो उसको भी जीवन,
संवारो उसे भी और हो जाओ पावन।
बेटी को जो समझे है जीवन का बोझ,
प्रभु कर दो उसकी मति को निरोग।।
-प्रतिमा
(This text is 100% pure and self made and has not been copied from anywhere else.)
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