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Saturday, 7 October 2017

करवा चौथ का असल अभिप्राय

   
                 
                         दोस्तों, हमारा भारत देश त्योहारों का देश है। हमारे यहाँ हर मौसम का संबंध किसी न किसी व्रत और त्योहार से जुडा़ है। सदियों से इन व्रत, त्योहारों की परंपरा ने हमारी संस्कृति तथा सभ्यता को गौरवान्वित किया है। ये व्रत-त्योहार परिवार तथा संबंधों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करते हैं।

                            दो दिन बाद करवा चौथ का व्रत है। कुछ दिनो पहले से ही बाज़ारों की रौनक देखने लायक  है। श्रंगार सामग्री की रेहड़ियों में भीड़  की रेलम-पेल है। मेंहदी लगाने वालों की तो चांदी होती है। ब्यूटी-पार्लरों  में तो पैर रखने की जगह नही होती, यहाँ एडवांस-बुकिंग से काम होता है।महंगे परिधानो और महंगे जेवरात खरीदने की उत्कंठा ज्यादातर हर ओर दिखाई देती है।

                              यदि हम इस व्रत की गहराई में जाते हैं तो यह मान्यता है कि यह सावित्री द्वारा यमराज से अपने पति के प्राणों की रक्षा हेतु किया गया अन्न-जल का त्याग था। हमारे देश में पति की भलाई एवं दीर्घायु होने के लिए कई अन्य व्रत भी किए जाते हैं, जैसे-तीज आदि परन्तु करवा चौथ व्रत पर बाजा़रीकरण का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। इसकी प्रमुख वजह हमारी बॉलीवुड की फ़िल्मे हैं, इसमें इतना अधिक सौन्दर्यीकरण एवं भव्यता प्रदान किया जाता है ,जिसके प्रभाव से सामान्य आम-जन भी बाह्य आडंबर में खोकर अपने बजट के दायरे से बाहर चले जाते हैं।

                              अतः यह ज़रूरी है कि व्रत के महत्व को हृदय से महसूस किया जाए। सिर्फ दिखावे की गलाकाट प्रतियोगिता में न पड़कर तथा अपने बजट के दायरे में रहकर भी इस व्रत की खुशी को दोगुनी की जा सकती है। यह एक विचारणीय प्रश्न है कि जब पति एवं परिवार की भलाई  तथा सुख-शान्ति के लिए कई अन्य व्रत-त्योहार सन्तुलित खर्च के साथ मनाते हैं तो फिर करवा चौथ व्रत पर ही बाज़ारीकरण का सर्वाधिक प्रभाव क्यों है?
               
   ज़रा सोचिए....।

 आप सभी को करवा-चौथ की हार्दिक शुभ कामनाएँ।

                                                                                                          -प्रतिमा 


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