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Wednesday, 11 October 2017

कान्हा की महिमा


 
     श्याम जो आन बसे मोरे मन में
   
     चैन गंवाई  नींद नहीं नैनन में


     श्याम सुंदर मुख मोर मुकुट धारी

     देख तुम्हरी महिमा हुई बलिहारी

     चंदा सो मुख मैं तुम्हरो निहारूँ

     साँझ ढ़ले तुम्हरी नजर उतारूँ

     तुम्हरी आभा कण-कण में समाई

     सबकी बिगड़ी तुमने बनाई

     दरस दिखाओ करो पूरी मन की तृष्णा

     चरण पखारूँ नित ओ मोरे  कृष्णा

     तुम संग बांधी कान्हा जीवन की डोरी

     तोड़ न देना पल में  आस ये मोरी

     बंसी की तान सुन सुध-बुध गँवाई

     तुम संग कान्हा सच्ची प्रीत निभाई


     हुई विरहन सुन  मनवा करे आलाप

     आन बसो कान्हा  दूर करो संताप ।
  

                                         -प्रतिमा 


(This text is 100% pure and self made and has not been copied from anywhere else.)



     

5 comments:

  1. बहुत बहुत सुंदर कविता है
    प्रतिमा में ये प्रतिभा भी थी पता नही था

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ....

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