श्याम जो आन बसे मोरे मन में
चैन गंवाई नींद नहीं नैनन में
श्याम सुंदर मुख मोर मुकुट धारी
देख तुम्हरी महिमा हुई बलिहारी
चंदा सो मुख मैं तुम्हरो निहारूँ
साँझ ढ़ले तुम्हरी नजर उतारूँ
तुम्हरी आभा कण-कण में समाई
सबकी बिगड़ी तुमने बनाई
दरस दिखाओ करो पूरी मन की तृष्णा
चरण पखारूँ नित ओ मोरे कृष्णा
तुम संग बांधी कान्हा जीवन की डोरी
तोड़ न देना पल में आस ये मोरी
बंसी की तान सुन सुध-बुध गँवाई
तुम संग कान्हा सच्ची प्रीत निभाई
हुई विरहन सुन मनवा करे आलाप
आन बसो कान्हा दूर करो संताप ।
-प्रतिमा
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बहुत बहुत सुंदर कविता है
ReplyDeleteप्रतिमा में ये प्रतिभा भी थी पता नही था
बहुत-बहुत धन्यवाद ....
DeleteGreat work...Go ahead
ReplyDeletesure and thanks for the encouragement..
DeleteBahut badhiyan
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