दोस्तों, यह मेरी नई कविता एक प्रेरणादायक कृति है, जो संघर्ष के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। मेरी यह कविता उन अध्ययनरत विद्यार्थियों को समर्पित है, जिन्हें रुकना नहीं है, थकना नहीं है, बस मंजिल की ओर आगे बढ़ना है। आशा है आप को यह पसंद आएगी।

जिन्दगी के रास्ते, हो कितने भी कठिन
संघर्ष के साए में रहके, चोट करते रात-दिन
फिर भी इनको कर किनारे, हो भले ये हलाहल
बस चला चल, तू चला चल, तू चला चल...
कठिनाई की इस राह पर, थक-हार कर जो थम गया
अंजान राहों की भंवर से, यूँ ही जो तू डर गया
फिर दूर दिखती रोशनी, हाथ से जाए निकल
बस चला चल, तू चला चल, तू चला चल...
मिल जाएंगे कुछ हाथ तुझको, इस व्यथा की राह पे
खिल जाएगा मन सुन के दो, स्नेह शब्द दुलार के
जो न मिले फिर भी तू बढ़, इस राह पे होके प्रबल
बस चला चल, तू चला चल, तू चला चल...

गरल मिश्रित बूंद अमृत , अब तुझे पीना पड़ेगा
कांटों के पगडंडियों पर , हो संभल चलना पड़ेगा।
पांव के इन छालों के इस , दर्द को कर बेदखल
बस चला चल, तू चला चल, तू चला चल...
है हाथ तेरे वज्र और , पैरों में सौ गज का है बल
खुद को समझ वट सा वृहद ,और मन को कर स्थिर अचल
गिर कर संभल फिर उठ बना , एक चांद तारों का महल
बस चला चल, तू चला चल, तू चला चल...
धन्यवाद
-प्रतिमा
Very motivating... Good
ReplyDeleteThanks a lot...
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