
कल शाम छत पर खड़ी थी
मन में थी सवालों की कतार,
सूरज को कौन है गर्मी देता,
चंदा बदले नित कैसे आकार।
इन इंद्रधनुषी रंगों में
कौन फरिश्ता आकर है रंग भरता ,
इन कल-कल करते झरनों से,
कैसे झर-झर है पानी बहता।
किसने धरा को नभ की चादर ओढ़ाई,
और किसने ज़मीं पे हरी चादर बिछाई।
क्यों वेग से आती है सागर की लहरें ,
किनारों पे आते ही क्यों थक के ठहरें।
पहाड़ों की होती क्यों अपनी ही शान,
युगों से खड़े हैं ये यूंँ सीना तान ,

क्यों आसमां में होता है पंछी का शोर,
क्यों वर्षा में नाचे पंख फैला के मोर।
इन पत्तों पे किसने ओस की बूँदें गिराईं ,
और किसने इन फूलों की बगिया बनाई।
हवाओं में घोला है किसने ये खुशबू ,
और किसने बिखेरा है रंगों का जादू।
कैसे भू की तपन को ,
बरखा ठंडा कर जाए ।
कैसे दूर क्षितिज़ में ,
ज़मी-आसमां मिल जाए ।
है कुदरत के किस्से अनोखे निराले,
इन गहरे भंवर से कोई कैसे पार पा ले।।
-प्रतिमा
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