कभी सोचतीं हूँ तो लगता है ये
जाने कहाँ गुम हुए वो बीते दिन
वो खुला-खुला सा आसमां,
वो दूर तक फैली हरियाली,
वो कुएं की रहट और,
खेतों में गेहूं की बाली
वो भौंरों की गुनगुन,
वो पेड़ों की डाली
वो रंग-बिरंगी उड़ती,
तितली मतवाली
वो कुएं पे पनिहारिन
की हँसी-ठिठोली
वो नन्हे बच्चों की
आपस में ठेला-ठेली
वो गर्मी की दोपहरी,
छुपना अमराई के नीचे
या फिर नदी की ठंडक में,
अपने साथी को खींचे
वो ठंडी की रातें,
चादर में खुद को समेटे
या अलाव को घेरे,
करें गपशप यूँ बैठे
वो सावन महीने दिखे,
सब धानी-धानी
वो कागज़ की कश्ती,
वो बारिश का पानी
वो गौरैयों का झुंड,
और माटी का अंगना
वो अल्हड़ सी गोरी
यूँ खनकाए कंगना
देतीं मन को खुशियाँ,
गुज़रे कल की यादें
कोई आज को काश,
फिर वैसा बना दे ।।
-प्रतिमा
(This text is 100% pure and self made and has not been copied from anywhere else.)
Hello dear, ur thoughts r very inspiring n motivating.
ReplyDeleteThanks a lot ...
Deleteअति सुंदर
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