कभी-कभी मन हो जाता है क्यों वाचाल
करता है मुझसे यूंँ ढ़ेरों सवाल ।
क्या तेरा वजूद और क्या तेरी हस्ती
रहे यूँ बेखबर जैसे छाई हो मस्ती ।
बस चलता चले तू रहे खुद से अंजान
क्यों होता न तुझको सच्चाई का भान ।
क्यों खुद को बनाता है भीड़ का एक हिस्सा
जो अब न थमा तो ख़तम तेरा किस्सा ।
रब ने भेजा है तुझको क्या बनने को धूल
थोड़ा कर ले जतन खुद की बन जा तू फूल ।
बावरे मन ने कैसी मचा दी हलचल
दी ऐसी चुभन खुद से हूँ मैं बेक़ल ।
जाने दिल मेरा, सच ही तो कहता है मन
क्यों खुद को तू रोके है, हो के बेमन ।
मन मेरा सच में है , एक आईना
देता है वो सीख , जो मिले जग में कहीं ना ।।
-प्रतिमा
करता है मुझसे यूंँ ढ़ेरों सवाल ।
क्या तेरा वजूद और क्या तेरी हस्ती
रहे यूँ बेखबर जैसे छाई हो मस्ती ।
बस चलता चले तू रहे खुद से अंजान
क्यों होता न तुझको सच्चाई का भान ।
क्यों खुद को बनाता है भीड़ का एक हिस्सा
जो अब न थमा तो ख़तम तेरा किस्सा ।
रब ने भेजा है तुझको क्या बनने को धूल
थोड़ा कर ले जतन खुद की बन जा तू फूल ।
बावरे मन ने कैसी मचा दी हलचल
दी ऐसी चुभन खुद से हूँ मैं बेक़ल ।
जाने दिल मेरा, सच ही तो कहता है मन
क्यों खुद को तू रोके है, हो के बेमन ।
मन मेरा सच में है , एक आईना
देता है वो सीख , जो मिले जग में कहीं ना ।।
-प्रतिमा
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Very nice... Keep it up
ReplyDeleteThank you
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